शुक्रवार, ८ मार्च, २०२४

में मुक्कमल हु



My next short film's end song



में मुक्कमल हु. में पूरी हु बिन तेरे भी

नजर तेरी ख़राब और घुंगट में ओढू.
तेरा खुद पर काबू नहीं इसलिए बुरखा में पेहनू
बेशरम बनकर तू रहे
और शरमाना न में छोड़ू।

ये सब अब भूल जा ..... क्युकी,
में मुक्कमल हु. में पूरी हु बिन तेरे भी

मेरा हौसला उन उंचाइयोंपर हे
जहा तेरा बौना कद ना पहोच पायेगा।
मेरा आसमान इतना ऊँचा है
उसपर तू क्या छीटा उड़ाएगा।

मुज़से बराबरी की की कोई उम्मीद ना रखना.....क्योकि,
में मुक्कमल हु. में पूरी हु बिन तेरे भी

शरम का पडदा मैंने खोल दिया है
अाुस बहना मैंने छोड दिया है
जंगल में भेड़िये बहोत है
पर घर बैठना मैंने भी छोड दिया है.

अब मेरी आबादी और मेरी बर्बादी में खुद चुनुंगी
मेरे मुक्कदर में टाके में खुद गडूंगी.....क्योकि,
में मुक्कमल हु. में पूरी हु बिन तेरे भी

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